शेयर बाजार में ट्रेडिंग जोखिम प्रबंधन इतना जरुरी कदम है कि, यह आपके पूंजी को खत्म या कई गुना भी कर सकता है। आज के इस लेख में हम risk management in trading hindi के बारे में सम्पूर्ण जानकारी और रणनीति के लिए जरुरी स्टेप्स बताने का प्रयास किया है।
जोखिम प्रबंधन क्या है? (risk management in trading hindi)
जोखिम प्रबंधन, ट्रेडिंग में होने वाला संभावित नुकसान, उसका आकलन और उस नुकसान को नियंत्रित करने की एक प्रक्रिया है। इसमें आपके निवेश पर अनिश्चित बाजार की वजह से होने वाले प्रभाव को कम करने के लिए रणनीति हैं।
जोखिम प्रबंधन ही एकमात्र नियम हैं जिसका पालन करके आप अपनी पूंजी की रक्षा कर सकते हैं। ट्रेडिंग में जोकिम प्रबंधन से आप अपने पूंजी को काफ़ी हद तक नुकसान होने से बचा सकते हैं और साथ ही अपने मानसिक स्थिति को भी मजबूत बना सकते हैं।
जोखिम प्रबंधन के मुख्य उद्देश्य।
➡️ जोखिम प्रबंधन के लिए मुख्य उद्देश्य निम्न हैं –
- पूंजी का संरक्षण। – जोखिम प्रबंधन का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य आपके निवेश किये गए पूंजी की सुरक्षा करना है, ताकि वह आपके पूंजी को बड़े हानि से बचाया जा सके।
- आपके जोखिम को सीमित करना। – इससे ट्रेड के दौरान यह सुनिश्चित करना कि हर एक ट्रेड में आपके जोखिम को सीमित किया जाए, ताकि कुल नुकसान नियंत्रण में रहे।
- लाभ को स्थिर करना। – जोखिम प्रबंधन का उद्देश्य लम्बे समय में लाभ की संभावना को बढ़ाना है, जिससे आप लगातार लाभ प्राप्त कर सकें।
- बाजार की अनिश्चितताओं से सुरक्षा। – बाजार की होने वाली अनिश्चितताओं और उनसे होने वाले नुकसान को सुरक्षा प्रदान करना।
- मानसिक शांति। – जब आप उचित जोखिम प्रबंधन करने का प्रयास करते हैं। एक ट्रेडर का मानसिक रूप से शांत होना जरुरी हैं, ताकि वह ट्रेड को शांत मन और रणनीति के साथ एक्सक्यूट कर सके।
ट्रेडिंग में जोखिम के प्रकार (Types of Risks in Trading)
1) बाजार का जोखिम।
शेयर बाजार में मार्केट रिस्क का मतलब ट्रेडिंग के दौरान उन अनिश्चितताओं और संभावित नुकसान को दर्शाता है जो बाजार के तुरंत की परिस्थितियों से उत्पन्न होती है। जब ट्रेडर अलग-अलग जैसे कि स्टॉक, बांड्स और कमोडिटीज में निवेश करता है। तब उसके लिए बाजार का उतार-चढ़ाव, कीमतों में बदलाव के प्रभाव से प्रभावित हो सकते हैं।
शेयर मार्केट में रिस्क का मतलब यह है कि, आपके निवेश की कीमतें अब अप्रत्याशित रूप से कभी कम या कभी ज्यादा हो सकती है। जिससे आपकी पूंजी पर संभावित लाभ के साथ-साथ हानि भी होती है। इसलिए ट्रेडर्स को यह सभी प्रकार के जोखिम की पहचान और उसके प्रबंधन के लिए उचित रणनीतियों का उपयोग करना बहुत जरूरी है।
2) क्रेडिट का जोखिम।
क्रेडिट जोखिम ट्रेडिंग के दौरान जब एक ट्रेडर अपने ट्रेड के अनुबंध की शर्तो को पूरा करने में विफल हो जाता है, ऐसी स्थिति को ही क्रेडिट जोखिम कहा जाता है।
उदहारण के लिए, जब कोई ट्रेडर किसी स्टॉक को बेचता है और दूसरा ट्रेडर इसको खरीद पाने में चूक जाता है। तो पहले ट्रेडर को वित्तीय नुकसान हो सकता है।
क्रेडिट रिस्क को प्रबंधित करने के लिए ट्रेडर, ब्रोकर और वित्तीय संस्था के क्रेडिट इतिहास जाँच के बाद ही संभावित हानियों से बचा जा सकता है।
3) लिक्विडिटी जोखिम।
लिक्विडिटी जोखिम, ट्रेडिंग के दौरान उस स्थिति को कहा जाता है, जब आपको किसी ट्रेड में शेयर को खरीदने या बेचने में कठिनाई होती है, या फिर जब ट्रेडर को अपनी पोजीशन को जल्दी और सही कीमत पर स्क्वायर-ऑफ करने में समस्या आती है।
ऐसी स्थिति तब उत्पन्न होती है, जब शेयर बाजार में पर्याप्त मात्रा में खरीददार या विक्रेता नहीं होते हैं, इसकी वजह से किसी स्टॉक की कीमत में बड़े उतार-चढ़ाव हो सकते है।
इस जोखिम को प्रबंधित करने के लिए किसी निवेशक या ट्रेडर को आमतौर पर ज्यादा लिक्विडिटी वाले स्टॉक की तरफ ध्यान देना चाहिए।
4) आर्थिक जोखिम।
ट्रेडिंग के दौरान आर्थिक जोखिम का मतलब उन संभावित वित्तीय हानियों से है, जो कई प्रकार के आर्थिक परिस्थितियों और घटनाओं के कारण उत्पन्न होते है। यह घटनाएं किसी भी देश की अर्थव्यवस्थाके सभी पहलुओं को प्रभावित कर सकता है। जैसे कि, मुद्रा स्थिति ब्याज की दरों में परिवर्तन, आर्थिक विकास में बाधा और सरकार की नई नीतियां।
उदाहरण के लिए, अगर किसी भी देश मेंअचानक से ब्याज की दरें बढ़ा दी जाती है तो ऐसी स्थिति में स्टॉक, बॉन्ड इत्यादि की कीमतें भी प्रभावित होती है।
आर्थिक जोखिम का प्रबंध करने के लिए, ट्रेडर्स और निवेशक को किसी स्टॉक का आर्थिक डाटा, उस सेक्टर के मार्केट ट्रेंड्स और मौजूदा आर्थिक नीतियों पर गहरी नजर रखनी चाहिए। इसके साथ हीअपने पोर्टफोलियो को डायवर्सिफाइड रणनीति के तहत बदलाव करते रहना चाहिए।
जोखिम प्रबंधन के तरीके (Risk Management Strategies)
➡️ पहला तरीका – स्टॉप लॉस के साथ ट्रेडिंग।
किसी भी ट्रेडर का स्टॉप-लॉस के साथ ट्रेडिंग करना एक महत्वपूर्ण जोखिम प्रबंधन की तकनीक मानी जाती है। जिसमें ट्रेडर अपने नुकसान को सीमित करने के लिए एक पूर्व निर्धारित कीमत पर अपनी पोजीशन को समाप्त कर देता है।
स्टॉप-लॉस स्वचालित रूप से काम करता है। जब आप किसी ट्रेड में स्टॉप-लॉस को सेट करके ट्रेड करते हैं। तब आपका नुकसान एक निश्चित सीमा तक ही सीमित रह जाता है।
जिससे आपकी पूंजी की सुरक्षा होती है और आप अधिक नियंत्रण और अनुशासन के साथ ट्रेडिंग कर पाते है। इसका उपयोग अधिकतर स्थिर बाजार में ट्रेड के समय लगाने से यह आपकी पूंजी को अधिक सुरक्षा प्रदान करती है।
➡️ दूसरा तरीका – पोजिशन साइजिंग।
पोजीशन साइजिंग, ट्रेडिंग के दौरान यह एक महत्वपूर्ण जोखिम प्रबंधन की तकनीक है, जो इस बात को निर्धारित करता है कि किसी ट्रेड में आपकी कितनी पूंजी को निवेश किया जाना चाहिए।
इसका प्रमुख उद्देश्य यह निश्चित करना है कि, हर एक ट्रेड में आपके कुल पोर्टफोलियो का कुछ निश्चित हिस्सा ही जोखिम में लगाया जाय। ताकि अगरआपका ट्रेड सफल नहीं रहता है तो ऐसी स्थिति में आपका नुकसान सीमित रहे।
पोजीशन साइजिंग की गणना आपके ट्रेड में लगी हुई पूंजी और स्टॉप-लॉस के स्तर के आधार पर की जाती है। पोजीशन साइजिंग की तकनीक के माध्यम से आप अपनी पूंजी को सुरक्षित रखते हुए अपने ट्रेड को अधिक संतुलित और संगठित तरीके से प्रबंध कर सकते है।
➡️ तीसरा तरीका – विविधता (Diversification)
ट्रेडिंग में जब किसी जोखिम प्रबंधन की बात की जाती है तो उसमें सबसे महत्वपूर्ण नाम डायवर्सिफिकेशन का ही आता है। जिसका प्रमुख उद्देश्य अलग-अलग प्रकार के बाजारों में, जैसे स्टॉक, बॉन्ड, कमोडिटीज या मुद्राओं में आपके निवेश में कुल जोखिम को काम करना होता है।
विविधीकरण से आप अपने पोर्टफोलियो में संभावित नुकसान की संभावना को काफी हद तक कम कर देते हैं। यह विशेष रूप से अस्थिर या अनिश्चित बाजारों में आपकी पूंजी को सुरक्षित रखने में अपनी बड़ी भूमिका निभाता है।
➡️ चौथा तरीका – लेवरेज का प्रयोग।
लेवरेज का उपयोग करना आपकी ट्रेडिंग में एक ऐसी रणनीति के रूप में कार्य कर सकता है जिससे कोई भी ट्रेडर अपने निवेश से अधिक पूंजी के साथ ट्रेड करने के लिए उधार के रूप में ली गई धनराशि का उपयोग करता है। यह आपको छोटे निवेश के साथ बड़े ट्रेड में पोजीशन लेने कीअनुमति देता है।
जिसके कारण आप कम पूंजी के साथ अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं। हालांकि, लेवरेज का उपयोग जोखिम से भरा हुआ भी हो सकता है क्योंकि यदि शेयर बाजार आपके मन मुताबिक ना चलकर आपके खिलाफ चला जाता है। तो आपका नुकसान भी बड़ी तेजी से बढ़ सकता है।
इसीलिए लेवरेज का प्रयोग सावधानीपूर्वक समझदारी के साथ करना चाहिए। लेवरेज के प्रयोग से आप अपने पूंजी पर संभावित नुकसान या प्रॉफिट प्राप्त कर सकते हैं।
➡️ पांचवा तरीका – धन प्रबंधन (Money Management)
ट्रेडिंग के दौरान धन का प्रबंधन एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जिसका उद्देश्य आपके कैपिटल की सुरक्षा करते हुए आपको लंबे समय तक लाभ प्राप्त करवाना होता है।
धन के प्रबंधन से आप अपने नुकसान को अधिक नियंत्रित और सुरक्षित कर सकते हैं। किसी एक ट्रेड में बिना धन प्रबंधन के आपके पास भविष्य में आने वाले ट्रेड्स के लिए पर्याप्त पूंजी नहीं बचेगी। इसलिए एक सफल ट्रेडर बनने के लिए, आपको सही प्रकार से धन का प्रबंधन करना चाहिए।
Read More @ 6 रोडमैप बताएंगे कि ट्रेडिंग कैसे और कहाँ से स्टार्ट करे।
जोखिम प्रबंधन के लाभ (Benefits of Risk Management)
➡️ निवेश की सुरक्षा।
ट्रेडिंग के दौरान धन का प्रबंधन एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जिसका उद्देश्य आपके कैपिटल की सुरक्षा करते हुए आपको लंबे समय तक लाभ प्राप्त करवाना होता है।
धन के प्रबंधन से आप अपने नुकसान को अधिक नियंत्रित और सुरक्षित कर सकते हैं। किसी एक ट्रेड में बिना धन प्रबंधन के आपके पास भविष्य में आने वाले ट्रेड्स के लिए पर्याप्त पूंजी नहीं बचेगी।
➡️ मानसिक और भावनात्मक नियंत्रण।
ट्रेडिंग के दौरान एक ट्रेडर मानसिक और भावनात्मक नियंत्रण ही उसे सफल बनाने में अति महत्वपूर्ण होता है। बाजार में अचानक और तेजी से बदलती हुई परिस्थितियों में एक ट्रेडर के लिए यह जरूरी हो जाता है कि वह अपने मन और भावनाओं को नियंत्रण में रखें।
डर और लालच जैसी भावनाएं ट्रेडिंग के दौरान अक्सर गलत निर्णय लेने का कारण बन जाती है। जिससे आपकी पूंजी के नुकसान का प्रतिशत बढ़ जाता है।
सफल ट्रेडिंग के लिए आपकी मानसिक और भावनात्मक संतुलन को एक बनाए रखना उतना ही महत्वपूर्ण है। जितना की किसी स्टॉक के टेक्निकल और फंडामेंटल का विश्लेषण करना।
जोखिम प्रबंधन के सामान्य गलतियाँ (Common Mistakes in Risk Management)
1) अति-आत्मविश्वास।
किसी भी ट्रेडर का ट्रेड के दौरान अति आत्मविश्वास या ओवर कॉन्फिडेंस का होना एक खतरनाक मानसिकता हो सकती है। जो आपके निवेश और सफलता के लिए एक गंभीर खतरे का कारण बन सकती है।
ऐसी स्थिति तब उत्पन्न होती है जब किसी ट्रेडर का लगातार ट्रेड में सफल हो जाता है। तब वह खुद पर अत्यधिक विश्वास करने लगता है और यह सोचता है कि वह अब बाजार को पूरी तरह से समझ चुका है। इस स्थिति में वह बिना किसी विश्लेषण के जोखिम से भरा हुआ निर्णय लेने लगता है।
जैसे कि, बड़े पोजीशन में एंट्री लेना, स्टॉप-लॉस का उपयोग न करना या अधिक से अधिक लेवरेज का उपयोग करके ट्रेड में एंट्री बनाना। इस अनुशासन हीनता का परिणाम बड़ा ही खतरनाक हो सकता है क्योंकि शेयर बाजार हमेशा अप्रत्याशित और अस्थिर होने की संभावना बनी रहती है।
इसीलिए आपको एक संतुलित सोच तथा समझदारी से निर्णय लेने चाहिए ताकि आप ट्रेड में लंबे समय तक अपनी स्थिति बनाए रखें।
2) नियमों की अनदेखी।
प्रत्येक ट्रेडर के लिए यह आवश्यक होता है कि, वह अपने अनुभव के आधार पर बनाये हुए नियमों और रणनीतियों का पालन करें। जैसे कि, स्टॉप-लॉस को लगाकर ही ट्रेड करना, पोजीशन साइजिंग का ध्यान रखना, रिस्क और रिवॉर्ड रेश्यो के अनुपात पर विचार करना इत्यादि शामिल है।
ट्रेडिंग के दौरान नियमों की अनदेखी करना एक गंभीर गलती हो सकती है। जो आपको ट्रेड के दौरान सफल बनाने की संभावना को काफी हद तक कम कर सकती है।
एक सफल ट्रेड के लिए यह महत्वपूर्ण है कि, अपने नियमों और रणनीतियों को दृढ़ता से पालन करें ना कि किसी अकस्मात स्थिति के आने की वजह से उन नियमों का उल्लंघन करें। यह अनुशासन ही आपको शेयर बाजार में निरंतर सफलता दिलाने में आपकी मदद कर सकता है।
3) असंगत धन प्रबंधन।
असंगत धन के प्रबंधन का मतलब यह होता है कि, आप अपनी पूंजी का उचित प्रबंध नहीं कर रहे हैं। जैसे कि, बिना किसी प्लान के बड़े पोजीशन में एंट्री लेना, ट्रेड के दौरान स्टॉप-लॉस का उपयोग न करना या अधिक से अधिक लेवरेज का उपयोग करना।
ऐसा करने से आपके नुकसान की संभावना बढ़ जाती है, क्योंकि आप एक ही ट्रेड में पूरी पूंजी को जोखिम में डाल देते हैं। लेकिन अगर बाजार आपके ट्रेड के विपरीत चल जाता है, तो ऐसे असंगत धन प्रबंधन के कारण आप अपने पूरी पूंजी को भी हमेशा के लिए खो सकते हैं।
इसीलिए एक सफल ट्रेडर के लिए यह आवश्यक है कि, वह एक अनुशासित धन प्रबंधन की रणनीति को अपने ट्रेड में शामिल करें ताकि वह अपने जोखिम को सीमित कर सके।
Read More @ तकनीकी विश्लेषण में चार्ट और इंडीकेटर्स का प्रयोग।
निष्कर्ष (Conclusion)
इस लेख के माध्यम से हमने आपको यह बताया है कि, किसी ट्रेडर को ट्रेडिंग के दौरान जोखिम प्रबंधन के सभी उपाय और साथ ही ट्रेडर द्वारा की जाने वाली सामान्य गलतियों को हमने विस्तार से वर्णन किया है।
जोखिम प्रबंधन का मुख्य उद्देश्य आपकी पूंजी का संरक्षण करके आपके लाभ और हानि के प्रतिशत को स्थिर बनाए रखना, आपकी मानसिक और भावनात्मक विचारों को सही सोच के साथ ट्रेड में उपयोग लेना इत्यादि।
इस लेख में हमने जोखिम के विभिन्न प्रकारों को समझने का प्रयास किया है और साथ-साथ जोखिम प्रबंधन के लिए प्रमुख तकनीक का भी वर्णन किया है। जोखिम प्रबंधन के विभिन्न लाभों को आप इस लेख में जान सकते हैं।
यदि आपको ट्रेडिंग जोखिम प्रबंधन के इस लेख को पढ़कर या सुनकर हमारी बताई हुई जानकारी अच्छी लगी हो तो कृपया इस लेख को अपने अन्य ट्रेडर भाइयों के साथ शेयर भी करें।
FAQ
Q.1 जोखिम कैसे उत्पन्न होते हैं?
“शेयर बाजार में ट्रेडिंग के दौरान जोखिम के उतपन्न होने के मुख्य कारण बाजार की अस्थिरता, निवेश के दौरान गलत निर्णय, राजनितिक घटनाएँ और जानकारी का आभाव।”
Q.2 रिस्क मैनेजमेंट कैसे करें?
➡️ ट्रेडिंग में रिस्क मैनेजमेंट के लिए आप निम्न उपाय कर सकते है।
- निवेश से पहले एक सही रणनीति के साथ अपना लक्ष्य बनाये।
- अपने पोर्टफोलियो को अलग-अलग सम्पत्तियो में विभक्त करें ताकि आपका नुकसान कम से कम हो।
- स्टॉप-लॉस आर्डर का उपयोग करे साथ ही अपने निर्णय का शक्ति से पालन करे।
- केवल उसी पैसे को ट्रेडिंग में निवेश करे जिसे आप खोने के लिए तैयार हो।
Q.3 जोखिम कितने प्रकार के होते हैं?
ट्रेडिंग में रिस्क को मापना थोड़ा मुश्किल प्रतीत होता है, क्योकि यह कई कारणों पर निर्भर करता है।
➡️ जोखिम के प्रमुख प्रकार निम्नलिखित है।
- निवेश में रिस्क।
- मार्केट रिस्क।
- वोलाटिलिटी रिस्क।
- लिक्विडिटी रिस्क।
- सिस्टम रिस्क।
Q.4 रिस्क एनालिसिस कैसे करें?
रिस्क एनालिसिस के लिए प्रमुख स्टेप्स आजमाए।
- रिस्क की निगरानी और समीक्षा करें।
- रिस्क प्रबंधन के नियम खुद बनाए।
- रिस्क को टालना सीखें।
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