इस लेख में आप सीखेंगे कि, how to learn volume trading जो शेयर बाजार में एक निवेशक और ट्रेडर को सही समय पर ट्रेड में एंट्री और एग्जिट का संकेत प्रदान करता है। वॉल्यूम ट्रेडिंग शेयर बाजार की दुनिया में यह एक ऐसी अवधारणा है, जो निवेशको और ट्रेडर द्वारा सबसे ज्यादा उपयोग किया जाता है। वॉल्यूम का मतलब यह होता है कि, एक विशेष समय अवधि में उस कंपनी के कितने शेयर का लेन-देन हो रहा है। यह पूरी तरह से डिमांड और सप्लाई पर निर्भर होता है।
उदाहरण के लिए, यदि किसी भी शेयर का भाव बढ़ रहा होता है। तो उसके साथ ही उसका वॉल्यूम भी बढ़ जाता है। इसी के विपरीत जब शेयर का भाव गिर रहा होता है। तो ऐसी स्थिति में उस शेयर का वॉल्यूम भी कम हो जाता है।
वॉल्यूम ट्रेडिंग क्या होता है (how to learn volume trading)
वॉल्यूम ट्रेडिंग सीखने के लिए आपको सबसे पहले ट्रेडिंग के बेसिक कॉन्सेप्ट को समझना होगा। इसके साथ ही अलग-अलग प्रकार के चार्ट्स और इंडिकेटर का उपयोग करके वॉल्यूम के डाटा को समझने का प्रयास करना होगा। वॉल्यूम का सीधा-सा संबंध शेयर के भाव के साथ होता है। इसीलिए एक नए ट्रेंड्स और पेटर्न्स की पहचान करने में निपुण होने की आवश्यकता होती है।
रोजाना बाजार के समाचार पत्रों और इवेंट्स पर नजर बनाए रखने की आवश्यकता होती है ताकि बाजार के रुझान के साथ उस शेयर्स के वॉल्यूम में होने वाले बदलाव की जानकारी हमें एक दिन पहले से ही हो जानी चाहिए। इसके साथ ही पेपर ट्रेडिंग ऐप या डेमो अकाउंट के माध्यम से आपको अपने ज्ञान को बार-बार अपडेट रखने की आवश्यकता होती है ताकि आप बिना किसी जोखिम के वॉल्यूम ट्रेडिंग के साथ अधिक से अधिक लाभ उठा सके।
वॉल्यूम ट्रेडिंग का महत्व (Importance of volume in trading)
वॉल्यूम ट्रेडिंग का महत्व आप इसी बात से लगा सकते हैं कि, जिस भी शेयर में वॉल्यूम अधिक होता है। सबसे ज्यादा खरीदारी और बिक्री भी इस शेयर में किया जाता है। इस तकनीकी का प्रयोग अलग-अलग रणनीतियों के हिसाब से किया जाता है।
वॉल्यूम ट्रेडिंग के महत्व का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि, सबसे पहले वॉल्यूम ट्रेडिंग मार्केट की दिशा की पहचान करने में एक नए ट्रेडर की काफी ज्यादा मदद करती है और यह आसान भी होता है। जब वॉल्यूम बढ़ता है तो इसका मतलब यह होता है कि, बाजार में निवेशकों की रुचि और उनका मूवमेंट अधिक है। जो संभावित रूप से उस शेयर के भाव को महत्वपूर्ण बदलाव के संकेत प्रदान करता है।
वॉल्यूम ट्रेडिंग से ट्रेडिंग के दौरान चार्ट्स में सिग्नल्स की पुष्टि होती है जैसे कि, यदि शेयर की कीमत बढ़ रही है और साथ ही वॉल्यूम भी बढ़ रहा है तो यह बुलिश संकेत के रूप में देखा जा सकता है। इसके विपरीत अगर शेयर की कीमत के साथ वॉल्यूम भी कम हो रहा होता है। तो इसका मतलब यह बियरीश सिग्नल दे रहा है अर्थात अब शेयर में गिरावट हो सकती है।
इसके माध्यम से यदि कोई प्रवृत्ति उच्च वॉल्यूम के साथ होती है। तो ऐसी स्थिति में उसे अधिक मजबूत माना जाता है। वॉल्यूम ट्रेडिंग के जरिए आप बाजार की अनिश्चितताओं और स्थिरता का सही आकलन कर सकते हैं ताकि आप ट्रेडिंग के दौरान बेहतर निर्णय ले सकें। वॉल्यूम ट्रेडिंग आपके ट्रेडिंग को अधिक बेहतर, प्रभावी तथा लाभदायक बनती है।
वॉल्यूम और प्राइस के बीच संबंध (The relationship between volume and price)
वॉल्यूम तथा शेयर के प्राइस के बीच का संबंध का सही आकलन लगाना। एक ट्रेडर के लिए बहुत आवश्यक होता है। जब किसी शेयर का वॉल्यूम बढ़ता है तो यह इस बात का संकेत प्रदान करता है कि, बाजार में गतिविधि अधिक हो रही है अर्थात अब शेयर का भाव कम या ज्यादा हो सकता है अगर इस दौरान शेयर का भाव बढ़ जाता है। तो इसे बुलिश संकेत माना जाता है। जो इस बात को दर्शाता है कि, खरीददारों की मांग अधिक संख्या में है जबकि इसके विपरीत अगर प्राइस गिरता है तो बेयरिश संकेत मिलता है। जो यह दर्शाता है कि, विक्रेताओं का दबाव बढ़ रहा है।
अगर शेयर का भाव बढ़ रहा है लेकिन वॉल्यूम कम है तो यह इस बात का संकेत होता है कि, शेयर की यह वृद्धि अस्थाई है। इसी प्रकार यदि शेयर का भाव गिर रहा है और वॉल्यूम भी कम है तो यह इस बात को दर्शाता है कि, बाजार में ज्यादा उत्साह नहीं है। वॉल्यूम और प्राइस के बीच का संबंध को जानकर आप मार्केट की प्रवृत्तियां और सही समय पर सही बदलावों को अनुमान लगाकर ट्रेडिंग के दौरान बेहतर निर्णय ले सकते हैं ताकि आपको ज्यादा से ज्यादा लाभ प्राप्त हो। इसके साथ ही आपको स्विंग ट्रेडिंग और डे ट्रेडिंग के बीच के अंतर को भी समझना होगा।
वॉल्यूम इंडिकेटर्स के प्रयोग से ट्रेडिंग (How to trade with volume)
वॉल्यूम ट्रेडिंग को सही तरीके से उपयोग करने के लिए, निवेशकों को अलग-अलग प्रकार के टेक्निकल इंडिकेटर्स का ज्ञान होना आवश्यक होता है। जैसे ऑन बैलेंस वॉल्यूम और वॉल्यूम मूविंग एवरेज यह कुछ महत्वपूर्ण टेक्निकल इंडिकेटर्स है। यह इंडिकेटर न केवल बाजार की दिशा को बताने में आपकी मदद करते हैं बल्कि उनकी सहायता से आप यह भी पता लगा सकते हैं कि, कब आपको ट्रेड में एंट्री या एग्जिट होना है।
ओन-बैलेंस वॉल्यूम (On-Balance Volume)
ओन-बैलेंस वॉल्यूम (OBV) एक विशेष प्रकार का टेक्निकल इंडिकेटर है। जो वॉल्यूम को उस शेयर के कीमत के साथ जोड़ता है। इस रणनीति का मुख्य उद्देश्य यह समझना है कि, आखिर शेयर में खरीदारी और बिक्री की प्रवृत्ति क्या है? इसके साथ ही यह रणनीति ऐसे संकेत प्रदान करती है। जिससे आप पता कर सकते हैं कि, बाजार की संभावित दिशा क्या हो सकती है। इस रणनीति का प्रयोग ट्रेडिंग के दौरान करना बड़ा ही सरल होता है।
मान लीजिए कि, यदि किसी शेयर की कीमत बढ़ती है। तो वॉल्यूम को पॉजिटिव रूप से जोड़ा जाता है। इसके विपरीत जब कीमत गिरती है तो वॉल्यूम को नेगेटिव रूप से घटाया जाता है। ओन-बैलेंस वॉल्यूम जब बढ़ता है तो इसका मतलब यह होता है कि, शेयर में खरीदारी का दबाव बढ़ रहा है जबकि गिरता हुआ ओन-बैलेंस वॉल्यूम का मान बिक्री के दबाव को प्रदर्शित करता है।
वॉल्यूम मूविंग एवरेज (Volume Moving Average)
वॉल्यूम मूविंग एवरेज एक विशेष प्रकार का टेक्निकल एनालिसिस करने का उपकरण होता है। जो वॉल्यूम डाटा का औसत निकालने में आपकी मदद करता है। इस इंडिकेटर की सहायता से ट्रेडरों को वॉल्यूम की प्रवृत्ति समझने में आसानी होती है।
वॉल्यूम मूविंग एवरेज किसी शेयर की वॉल्यूम की स्थिरता को कम करने के साथ लंबे समय में वॉल्यूम पैटर्न को पहचान करने में आपकी मदद करता है। VMA को सामान्य तौर पर निश्चित अवधि जैसे 50 या 100 दिनों की गणना के लिए किया जाता है।
जब वॉल्यूम मूविंग एवरेज वर्तमान वॉल्यूम सेऊपर होता है तो इस स्थिति में निवेशकों को यहसंकेत मिलता है कि, बाजार में सक्रियता बढ़ रही है जबकि यदि यह नीचे है तो यह कम सक्रियता का संकेत देता है। इसके अलावा वॉल्यूम मूविंग एवरेज का उपयोग ब्रेकआउट या ट्रेंड रिवर्सल के समय वॉल्यूम के समर्थन की पहचान करने के लिए भी किया जा सकता है। यह दोनों रणनीति फोरेक्स ट्रेडिंग में भी सबसे ज्याद आपकी मदद कर सकती है।
वॉल्यूम ट्रेडिंग की रणनीतियाँ (Volume trading strategies)
ट्रेंड रिवर्सल रणनीतियाँ (Trend Reversal Strategies)
ट्रेंड रिवर्सल मेथड निवेशको और ट्रेडरों को यह पहचान में मदद करती है कि, इस समय बाजार का ट्रेंड कैसा है? मतलब कि, बुलिश या बेयरिश। ट्रेंड रिवर्सल रणनीति का मुख्य उद्देश्य सही समय पर शेयर्स की खरीदी या बिक्री करना होता है। ताकि आप ज्यादा से ज्यादा लाभ उठा सकें। आप इंट्रिसिक वैल्यू का भी उपयोग कर सकते है। जब शेयर की कीमत एक नए उच्च या निम्न स्तर पर पहुंचती है लेकिन टेक्निकल इंडिकेटर्स इसके विपरीत संकेत देते हैं। तब ऐसी स्थिति में यह एक मजबूत संकेत हो सकता है कि, अब ट्रेंड बदलने वाला है।
ट्रेंड रिवर्सल का उपयोग करने के लिए कुछ प्रमुख टेक्निकल इंडिकेटर्स जैसे मूविंग एवरेज, क्रॉस ओवर का भी प्रयोग अधिक मात्रा में किया जाता है। जब कोई शेयर छोटी अवधि की मूविंग एवरेज एक बड़ी अवधि या लंबी अवधि की मूविंग एवरेज को ऊपर या नीचे क्रॉस करती है। तो यह ट्रेंड रिवर्सल का संकेत माना जाता है। छोटी मूविंग एवरेज 50 दिनों की और बड़ी मूविंग एवरेज 200 दिनों की होनी चाहिए।
ब्रेकआउट ट्रेडिंग (Breakout Trading)
वॉल्यूम ट्रेडिंग के दौरान ट्रेडर या निवेशक विभिन्न प्रकार के ट्रेडिंग रणनीति का उपयोग करके उस शेयर में खरीदारी या बिक्री के मौके तलाशता है। इसी रणनीति के तहत ब्रेकआउट ट्रेडिंग का उपयोग भी अधिक से अधिक किया जाता है। ब्रेकआउट ट्रेडिंग रणनीति के तहत निवेशक वॉल्यूम के आधार पर निर्णय लेते हैं। जब वॉल्यूम अचानक बढ़ता है तब ऐसी स्थिति में निवेदक को उस ट्रेड की शुरुआती संकेत मिलते हैं। Volume trading tips की सहायता से अधिक से अधिक लाभ उठाया जाता है।
इसके अलावा वॉल्यूम का एनालिसिस करते हुए निवेदक या ट्रेडर अपनी जोखिम प्रबंधन रणनीतियों को भी मजबूत कर लेता है। ब्रेकआउट ट्रेडिंग का मुख्य आधार टेक्निकल एनालिसिस ही होता है। ब्रेकआउट ट्रेडिंग की मदद से एक ट्रेडर ऐसे समय का इंतजार करता है जब कोई स्टॉक एक निश्चित स्तर पर जैसे कि, रेजिस्टेंस या सपोर्ट लेवल को पार कर जाती है। जैसे ही उस शेयर का भाव इन स्तरों को तोड़ती है। तब ऐसी स्थिति को ही ब्रेकआउट कहा जाता है। यही से नए ट्रेडर ब्रेकआउट ट्रेडिंग रणनीति का प्रयोग करते हुए उस शेयर में एंट्री करते हैं।
ब्रेकआउट ट्रेडिंग बहुत ही प्रभावी रणनीति होती है फिर भी एक ट्रेंड को इस सावधानी से लागू करना चाहिए क्योंकि बाजार की प्रवृत्तियां वॉल्यूम के आंकड़े तथा अन्य टेक्निकल इंडिकेटर्स का अध्ययन करना बहुत ही जरूरी हो जाता है। सही तरीके से इस रणनीतियों को उपयोग करने से ट्रेडर को अधिक लाभ भी प्राप्त होते हैं।
निष्कर्ष (conclusion)
इस लेख के माध्यम से हमने यह जाना कि, शेयर बाजार में एक ट्रेडर का शेयर के वॉल्यूम का मालूम होना कितना आवश्यक होता है। वॉल्यूम ट्रेडिंग की सहायता से ट्रेडर या निवेशक अधिक से अधिक ट्रेड में सफल होता है। शेयर बाजार में एक ट्रेडर को फंडामेंटल एनालिसिस के साथ-साथ उस कंपनी के टेक्निकल एनालिसिस को करना भी अधिक महत्वपूर्ण होtrading
Volume analysis in tradingसे आप अपने ट्रेडिंग को काफ़ी आसान बना सकते है। आप विभिन्न प्रकार के टेक्निकल इंडिकेटर्स का प्रयोग करके किसी भी शेयर के सटीक वॉल्यूम का अंदाजा लगा सकते हैं। अधिक वॉल्यूम का मतलब शेयर बाजार में उस कंपनी को खरीदने वालों की संख्या अधिक होती है मतलब उस कंपनी का ट्रेंड बुलिश होता है और जब शेयर में वॉल्यूम की कमी होती है तो यह साफ-साफ दर्शाता है कि, शेयर को बेचने वालों पर दबाव अधिक है अतः ट्रेडर जल्द ही शेयर को बेचने वाले हैं जिसकी वजह से शेयर का भाव भी कम होने लगता है।
हम उम्मीद करते हैं कि, हमारे द्वारा दी गई जानकारी के साथ-साथ आपके खुद के अनुभव के आधार पर आप वॉल्यूम ट्रेडिंग को समझ कर अधिक से अधिक लाभ को अर्जित करें। इसके साथ ही अगर यह जानकारी आपके टेक्निकल एनालिसिस और ट्रेडिंग के यात्रा को आसन बनाने में आपको मदद मिली होगी। तो कृपया आप इस लेख को अधिक से अधिक लोगों तक साझा करें।
FAQ
Q.1 ट्रेडिंग में वॉल्यूम का उपयोग कैसे करें?
ट्रेडिंग में आप वॉल्यूम का उपयोग करके शेयर में ट्रेड की मजबूती, ब्रेक आउट की पहचान और संभावित रूप से ट्रेड में होने वाले उलट-फेर की पुष्टि एक संकेत के रूप में प्राप्त होती है। जब वॉल्यूम बढ़ता है तब यह आमतौर पर मजबूत ट्रेंड को प्रदर्शित करता है। इसके साथ ही जब शेयर में कम वॉल्यूम होता है तब ऐसी स्थिति में ट्रेड एक कमजोरी का संकेत देता है।
Q.2 ट्रेडिंग में लिक्विडिटी क्या है?
ट्रेडिंग में लिक्विडिटी से आप किसी भी स्टॉक को बिना बड़ी कीमत के बदलाव के जल्दी से खरीदा या बेचा जा सकता है। जब शेयर में उच्च लिक्विडिटी होती है तो यह संकेत होता है कि, ट्रेडिंग में वॉल्यूम अधिक है। जिसकी वजह से उस शेयर को आसानी से और तेजी से खरीदी या बिक्री की जा सकती है। लिक्विडिटी का होना इसलिए जरूरी है क्योंकि यह स्प्रेड को कम करता है और ट्रेडिंग की लागत को भी काफी हद तक घटा देता है।
Q.3 ट्रेडिंग वॉल्यूम कैसे मापा जाता है?
ट्रेडिंग में वॉल्यूम को मापने के लिए किसी विशेष समय के अंतराल में ट्रेड किए गए कुल शेयर या अनुबंधों की संख्या का आकलन करके तथा किस दिन महीने में ट्रेड किए गए कुल शेयर की संख्या के आधार पर किया जाता है।
Q.4 स्टॉक में हाई कॉल वॉल्यूम का क्या मतलब है?
शेयर बाजार में कॉल वॉल्यूम का मतलब यह होता है कि, बहुत से ट्रेडर्स या निवेशक कॉल ऑप्शन खरीद रहे हैं। निवेशकों में स्टॉक की कीमत बढ़ने की उम्मीद होती है। इसीलिए वह कॉल ऑप्शन को ही खरीद रहे होते हैं। अत्यधिक कॉल वॉल्यूम बाजार में उत्साह और चिंता दोनों को दर्शाती है। जिसकी वजह से किसी खास घटना या समाचार के प्रभाव से हो सकता है।
Q.5 ट्रेडिंग में वॉल्यूम को कैसे समझें?
शेयर मार्केट में वॉल्यूम को समझने के लिए आपको किसी विशेष समय अवधि में किए गए शेयर की संख्या को प्रदर्शित करता है। जब वॉल्यूम बढ़ता है तो इसका मतलब ट्रेंड मजबूती का संकेत देता है और जब कीमतें बढ़ रही होती हैं तो वॉल्यूम भी बढ़ जाता है। सपोर्ट और रेजिस्टेंस को पार करते समय जब वॉल्यूम अधिक होता है। तो यह मजबूत ब्रेकआउट का संकेत प्राप्त होता है।
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