इंट्रिसिक वैल्युएशन से हम किसी भी कंपनी के वैल्यूएशन को 5 मिनट से कम में निकालना सीखने वाले हैं। how to calculate intrinsic value of share with example से आप सीखेंगे कि कोई कंपनी हमें सस्ते प्राइस पर मिल रही है या महंगे प्राइस पर।
इस लेख के माध्यम से आप आसानी से मुख्य 5 तरीको में से किसी भी एक तरीके से किसी भी कंपनी के आंतरिक मूल्य को ज्ञात कर सकते है। intrinsic value को निकलना किसी भी निवेशक के लिए अति आवश्यक है क्योंकि इसी वैल्यू से आप यह आसानी से मालूम कर सकते है कि, क्या अभी यह कंपनी आपको सस्ते भाव पर मिल रही है या फिर महंगे भाव पर।
इंट्रिसिक वैल्यू क्या होती है (Definition of Intrinsic Value)
इंट्रिसिक वैल्यू का सीधा-सा मतलब यह होता है कि, किसी भी संपत्ति जैसे कि स्टॉक, बॉन्ड या फिर रियल स्टेट इत्यादि का वास्तविक या अंतर-निहित मूल्य ज्ञात करना। इस मूल्य से आप उस संपत्ति के मौलिक गुण जैसे कि, उस कंपनी में नगद प्रवाह, लाभ, या दीर्घकालिक विकास इत्यादि की संभावनाओं के आधार पर निर्धारित किया जाता है।
इंट्रिसिक वैल्यू का प्रमुख उद्देश्य किसी भी प्रकार की संपत्ति में वर्तमान मूल्य के मुकाबले अधिक या कम मूल्यवान भाव का पता लगाना होता है। इंट्रिसिक वैल्यू का महत्व किसी भी निवेशक के लिए इसलिए जरूरी हो जाता है क्योंकि इंट्रिसिक वैल्यू से निवेशक को सही और स्पष्ट निर्णय लेने में मदद मिलती है। इसके माध्यम से निवेशक यह जान सकता है कि, उसे संपत्ति का मूल्य वास्तविक क्षमता के मुकाबले कितनी मूल्यवान है या नहीं?
इंट्रिसिक वैल्यू का महत्व (Importance of Calculating Intrinsic Value)
कोई भी निवेशक इंट्रिसिक वैल्यू का उपयोग करके एक स्टॉक या किसी संपत्ति के वर्तमान मूल्य से कम या अधिक महत्वपूर्ण भाव की जानकारी को अर्जित करने के लिए इसकी गणना करता है। गणना के पश्चात यदि इंट्रिसिक मूल्य, बाजार मूल्य से अधिक मिलता है।
तो निवेशक इस स्थिति को अंडर वैल्यू मानकर कंपनी को खरीदने का निर्णय लेता है। इंट्रिसिक वैल्यू की सहायता से निवेशक अपनी विशेष रणनीतियों में रिस्क प्रबंधन का इस्तेमाल करके बेहतर निर्णय लेकर खरीदारी करता है। इसमें ऐसी संपत्तियों की पहचान कर सकते है जो संभावित रूप से मूल्यवान हो सकते हैं।
इंट्रिसिक वैल्यू की गणना के पश्चात कंपनी के वित्तीय विवरण जैसे कि, बैलेंस शीट, कंपनी के आय का स्टेटमेंट तथा कैश फ्लो स्टेटमेंट का व्यक्तिगत विश्लेषण करता है। इसके बाद निवेशक को कंपनी की वित्तीय स्थिति की गहराई से समझने का अवसर मिलता है। इसीलिए किसी भी कंपनी को खरीदने या बेचने से पहले उसके इंट्रिसिक वैल्यू का जानना बहुत ही जरूरी हो जाता है।
बाजार मूल्य और इंट्रिसिक मूल्य में अंतर (Market Value vs Intrinsic Value)
किसी भी कंपनी के बाजार मूल्य और इंट्रिसिक मूल्य दोनों में बड़े ही महत्वपूर्ण अंतर होते हैं। बाजार मूल्य का मतलब किसी भी प्रकार की संपत्ति का वह मूल्य बाजार में उसे खरीदे जाने या बेचे जाने पर मिलता है। बाजार मूल्य आपूर्ति और मांग के आधार पर मतलब कि, डिमांड और सप्लाई के आधार पर निर्धारित किया जाता है। जो समय-समय पर बदलता रहता है।
वहीं दूसरी ओर इंट्रिसिक मूल्य वह मूल्य कहलाता है। जिसमें किसी भी संपत्ति का वास्तविक या अंतर निहित मूल्य उपस्थित होता है। जो उसकी मौलिक विशेषताएं जैसे कि, भविष्य में उस कंपनी का नगद प्रवाह, लाभ का अर्जन तथा उसकी आर्थिक स्थिति के आधार पर ही निर्धारित होता है। इंट्रिसिक मूल्य कंपनी के मौलिक विश्लेषण पर भी आधारित होता है। बाजार मूल्य में अन्य सभी निवेशकों के व्यवहार समाचार घटनाओं तथा उस देश की अर्थव्यवस्था की स्थिति पर निर्भर करता है। जब किसी भी संपत्ति की मांग यानी की डिमांड बढ़ती है। तो उस का बाजार मूल्य अचानक ही बढ़ जाता है।
भले ही कंपनी की मौलिक स्थिति में कोई भी परिवर्तन ना हुआ हो। उसके बावजूद भी उस कंपनी का बाजार मूल्य अधिक हो जाता है। लेकिन इंट्रिसिक वैल्यू में अलग-अलग विधि से जैसे कि, डीसीएफ मतलब की डिस्काउंटेड कैश फ्लो, नेट ऐसेट वैल्यू या फिर डिविडेंड डिस्काउंट मॉडल के आधार पर इसकी गणना की जाती है।
इस प्रकार के मूल्य कंपनी के मौलिक आंकड़ों के साथ-साथ उनके वित्तीय रिपोर्ट्स की गंभीरता से अध्ययन के बाद ही निर्धारित की जाती है। किसी भी कंपनी का बाजार मूल्य अक्सर बदलता रहता है। इसके साथ ही यह कई बाहरी अन्य कारकों पर भी निर्भर करता है जैसे कि, बाजार की भावनाएं समाचार पत्रों का महत्व इत्यादि से प्रभावित होता है।
उदाहरण के लिए,
किसी भी कंपनी के बारे में सकारात्मक या फिर नकारात्मक समाचार खबरें आने से उस कंपनी के बाजार मूल्य बड़ी ही तेजी से बदल जाते हैं। लेकिन इंट्रिसिक वैल्यू, बाजार वैल्यू की अपेक्षाकृत स्थिर अवस्था में होता है क्योंकि इसमें किसी भी कंपनी का दीर्घकालिक वित्तीय स्थिति के आधार पर ज्ञात किया जाता है।
मान लीजिए अगर कंपनी की मौलिक स्थिति मजबूत है। तो इस स्थिति में कंपनी का इंट्रिसिक वैल्यू भी बदल जाता है। इंट्रिसिक मूल्य समय के साथ-साथ बहुत कम परिवर्तित होता है। बाजार मूल्य से निवेशकों के लिए तुरंत ही निर्णय लेने में बड़ी सफलता प्राप्त होती है। यदि कोई भी स्टॉक वर्तमान में अगर वह बाजार मूल्य पर उपलब्ध है।
तब निवेशक इसी मूल्य का उपयोग करके उस कंपनी को खरीदने के निर्णय को बना सकता है। लेकिन इंट्रिसिक वैल्यू में निवेशक को यह निर्धारित करने में आसानी होती है कि कोई संपत्ति अंडर वैल्यूड मतलब कि, कम मूल्यवान हो गई है या नहीं कोई भी निवेशक इंट्रिसिक वैल्यू की तुलना उस कंपनी के बाजार मूल्य से करने के पश्चात अपने निवेश के निर्णय को अधिक सफल बना सकता है।
Top 5 Methods to Calculate Intrinsic Value (with Example)
DCF Valuation Method
डीसीएफ (DCF) का फुल फॉर्म डिस्काउंटेड कैश फ्लो होता है। यह इंट्रिसिक वैल्यू निकलने का सबसे कारगर और महत्वपूर्ण विधि है। जिसका उपयोग करके निवेशक किसी भी कंपनी के संपत्ति का इंट्रिसिक वैल्यू का आकलन आसानी से कर सकता है। इस विधि में भविष्य के नगद प्रवाहों को उसके वर्तमान मूल्य में बदल देती है। जो निवेशक के निवेश जोखिम को प्रदर्शित करती है। डीसीएफ विधि में भविष्य के नगद प्रवाहों का अनुमान लगाना इत्यादि शामिल होता है। इसमें प्रयुक्त छूट दर निर्धारित किया जाता है और टर्मिनल मूल्य की गणना को भी शामिल किया जाता है। डिस्काउंटेड कैश फ्लो विधि में निवेशक यह पता लगा सकता है कि, कोई भी संपत्ति उसके बाजार मूल्य की तुलना में कितना अधिक या कम मूल्य वाले हैं ताकि उसे बेहतर निर्णय लेने में मदद मिल सके। इस विधि का मुख्य उद्देश्य अपेक्षित नगद प्रवाहों के वर्तमान मूल्य में परिवर्तित करना। इस प्रक्रिया में सबसे पहले किसी भी प्रकार की कंपनी के नगद प्रवाहों का पूर्व आकलन किया जाता हैजिसमें उसे कंपनी की बिक्री कंपनी को बनाने में लागतऔर अन्य सभी प्रकार के वित्तीय मापदंडों को ध्यान में रखा जाता है। एक बार जबभविष्य केनगद प्रवाहों का आकलन कर लिया जाता है
Ben Graham Valuation Method
बेन ग्राहम जिसे शेयर मार्केट की दुनिया में वैल्यू इन्वेस्टिंग का पितामह माना जाता है। जिन्होंने निवेश की दुनिया में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। बेन ग्राहम का मानना था कि, निवेश केवल स्टॉक की खरीदी या फिर बिक्री ही नहीं कहलाती है बल्कि यह एक कंपनी के वास्तविक मूल्य को समझने की प्रक्रिया होती है। उन्होंने सुरक्षा मार्जिन सिद्धांत को भी दुनिया के सामने प्रदर्शित किया। जिसमें निवेशक को किसी भी निवेश में संभावित जोखिम को ध्यान में रखते हुए उस कंपनी के वास्तविक मूल्य को कम कीमत पर खरीदने की सलाह देता है। ग्राहम की इस मूल्यांकन विधि में सबसे पहले आप एक कंपनी के मूल सिद्धांतों का विश्लेषण करते हैं। जिसमें कंपनी की वित्तीय स्थिति, उसकी वार्षिक आय, लाभ और कर्ज को ध्यान में रखते हुए इसका अध्ययन किया जाता है।
ग्राहम ने यह भी सलाह दी थी कि, निवेशक को कंपनी के वार्षिक रिपोर्ट तथा बैलेंस शीट दोनों का ही गहन अध्ययन करना चाहिए। ताकि वह कंपनी की आर्थिक स्थिति कोसही तरीके से समझ सके। इस विधि में सबसे पहले निवेशक को कंपनी की EPS मतलब की अर्निंग पर शेयर की गणना करनी चाहिए। यह कंपनी के प्रति शेयर आय को दर्शाता है। इसका मतलब यह है कि, आप किसी कंपनी के एक शेयर को खरीदने पर कितना मुनाफा अर्जित करेंगे। इसके बाद निवेशक PE RATIO विधि में कंपनी की कुल संपत्तियां में से उसके कुल कर्ज को घटाया जाता है। जिसके द्वारा निवेदक यह सुनिश्चित करता है कि, कंपनी का मार्केट कैप उसके नेटवर्थ से कम हो। यदि ऐसा होता है तो कंपनी का स्टॉक संभावित रूप से अंडरवालुएड स्थिति में है और आपको इसमें खरीदारी का मौका मिल रहा है। ग्राहम की सुरक्षा मार्जिन सिद्धांत के अनुसार निवेशक को किसी भी कंपनी में निवेश से पहले एक निश्चित सुरक्षा मार्जिन को ध्यान में रखना चाहिए।
उदाहरण के लिए, यदि एक कंपनी का वास्तविक मूल्य ₹100 है। तो निवेशक को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि, वह स्टॉक उसे ₹70 से ₹80 में प्राप्त हो। इस प्रकार अगर बाजार में कभी अनिश्चितता आ जाए। तो भी निवेशक को निवेश की सुरक्षा महसूस हो सके। इसके अलावा ग्राहम ने निवेशकों को यह भी सलाह दी है कि, आप अपने पोर्टफोलियो ससे किसी एक निवेश में आपको होने वाले नुकसान का प्रभाव कम हो जाता है।
ग्राहम के अनुसार, किसी निवेशक को अलग-अलग प्रकार की संपत्तियों में निवेश करना चाहिए। जैसे कि स्टॉक, बॉन्ड इत्यादि ताकि वे अपनी जोखिम की प्रोफाइल को संतुलित बना सके। बेन ग्राहम के सिद्धांत से हमें यह पता चलता है कि, निवेश में सफलता आपको केवल ज्ञान और कौशल से नहीं मिलेगी बल्कि धैर्य, समझ और अनुशासन से मिलती है। उनके सिद्धांतों का पालन करके कोई निवेशक अपने विधि लक्षण को प्राप्त करने में कौशल नहीं, बल्कि धैर्य, समझ और अनुशासन से भी आती है। उनके सिद्धांतों का पालन करने से निवेशक अपने वित्तीय लक्ष्यों को प्राप्त करने में सक्षम होते हैं। और एक सुरक्षित और स्थायी भविष्य की ओर बढ़ते हैं।
Expected Returns Valuation Method
अपेक्षित रिटर्न वैल्यूएशन विधि एक बड़ा ही महत्वपूर्ण कंपनी के विश्लेषण की तकनीकी मानी जाती है। इसके उपयोग से निवेश के मूल्य का अनुमान लगाया जाता है। इस विधि की सहायता से किसी कंपनी के भविष्य में होने वाले कैश फ्लो की भविष्यवाणी की जाती है।इसके साथ ही उसे कंपनी से जुड़े जोखिमों का अनुमान भी लगाया जाता है। अपेक्षित रिटर्न वैल्यूएशन की प्रक्रिया से निवेशक को विभिन्न प्रकार के आर्थिक संकट को कंपनी की पिछला प्रदर्शन और बाजार की रुझानों का गहरा विश्लेषण करना होता है।
इस विधि का मुख्य उद्देश्य किसी निवेशक द्वारा कंपनी के ऐसेट से भविष्य में मिलने वाले रिटर्न का अनुमान लगाया जाता है। इस विधि में सबसे पहले निवेशक को यह निर्धारित करना पड़ता है कि, किसी भी संपत्ति से उसे कितनी नगद राशि प्राप्त करनी है। उसके बाद ही अपेक्षित नगद प्रवाहों को वर्तमान मूल्य से परिवर्तित करने करने के लिए उसे डिस्काउंट रेट का उपयोग करना पड़ता है। डिस्काउंट रेट आमतौर पर जोखिम मुक्त दर और बाजार के जोखिम को जोड़कर ही ज्ञात किया जाता है।
अपेक्षित रिटर्न वैल्यूएशन विधि से एक निवेशक को कई प्रकार के फायदे होते हैं। जिसमें सबसे पहले निवेदक को भविष्य में कंपनी की संभावनाओं को लेकर आकलन करने में आसानी होती है। इसके अलावा भी इस विधि का प्रयोग करके निवेशक कंपनी के साथ अपनी पूंजी के जोखिम का प्रबंध भी बड़ी ही आसानी से कर सकता है क्योंकि इस विधि से निवेशक को विभिन्न आर्थिक परिदृश्य के तहत भविष्य में होने वाले संभावित रिटर्न के साथ-साथ जोखिम के मूल्यांकन करने कीअनुमति भी प्रदान करती है। इस विधि की कुछ प्रमुख सीमाएं भी है।
उदाहरण के लिए, जब आप किसी कंपनी के भविष्य की नगद प्रवाहों की एकदम सटीक भविष्यवाणी करना कठिन हो जाता है क्योंकि जब शेयर बाजार की स्थिति आर्थिक बदलाव और बाहरी कारण की वजह से अक्सर भविष्य की कल्पना करना कठिन हो जाता है। इसके अलावा सही प्रकार से छूट दर का चयन करना भी कठिन हो जाता है। अपेक्षित रिटर्न वैल्यूएशन विधि निवेशकों को सूचित निर्णय लेने में उनकी मदद करती है। यह न केवल निवेश के मूल्य को समझने के लिए सहायक होती है बल्कि विभिन्न प्रकार के बाजारों की स्थिति के साथ-साथ आर्थिक परिवर्तनों के प्रति निवेशक को एक स्पष्ट सोच मिलती है। इस विधि से निवेदक को वित्तीय प्रबंधन जोखिम की गणना और पोर्टफोलियो का निर्माण करने में बड़ा योगदान होता है।
Historical Valuation Method
ऐतिहासिक मूल्यांकन विधि किसी भी कंपनी का वित्तीय विश्लेषण करने में अधिक महत्वपूर्ण होता है। जो किसी भी कंपनी के मूल्य का अनुमान लगाने के लिए उसे कंपनी के पिछले प्रदर्शन के साथ-साथ ऐतिहासिक डेटा को आधार मानकर निर्धारित करता है। इस विधि में मुख्य रूप से ऐतिहासिक आय, कंपनी का राजस्व वृद्धि, उसका लाभांश और अन्य वित्तीय मैट्रिक्स का उपयोग करके विश्लेषण किया जाता है ताकि उसे कंपनी के मूल्यांकन को आसानी से समझा जा सके। इस विधि में कंपनी के भविष्य की संभावनाओं के बारे में निर्णय लेने में मदद मिलती है।
यह वास्तविक डाटा का उपयोग करते हुए निवेशकों को उतार-चढ़ाव पहचान की अनुमति देता है। जो निवेशक की अपेक्षाओं को समझने के लिए मदद करती है। इस विधि की कुछ सीमाएं भी हैं, क्योंकि किसी भी कंपनी के अतीत का प्रदर्शन हमेशा ही उस कंपनी के भविष्य के परिणामों की व्याख्या नहीं कर सकता। बाजार की गतिशीलता कंपनी का आर्थिक परिवर्तन के साथ-साथ कंपनी की संबंधित घटनाएं किसी संपत्ति के मूल्य को प्रभावित कर सकता है। कुल मिलाकर हम ऐसा कह सकते हैं कि, ऐतिहासिक मूल्यांकन विधि किसी भी निवेशक के लिए किसी संपत्ति के अंतर निहित मूल्य का आकलन करने के लिए प्रमुख उपकरण है। इसमें अन्य मूल्यांकन तकनीक को मिलाकर अधिक व्यापक तरीके से विश्लेषण में उपयोग किया जाता है ताकि निवेशक अधिक प्रभावी ढंग से निर्णय ले सके।
Cash Flow Yield Valuation Method
कैश फ्लो यील्ड मेथड एक विशेष प्रकार की वित्तीय तकनीक है। इसके उपयोग से किसी भी संपत्ति या निवेश के मूल्य को समझने के लिए ज्ञात किया जाता है। इस विधि में अपेक्षित नगद प्रवाह को उसकी कीमत के साथ जोड़ दिया जाता है ताकि निवेशक यह समझ पाए कि, उसे कितना रिटर्न आने वाले भविष्य में मिल सकता है। कैश फ्लो यील्ड को सामान्य तौर पर वार्षिक नगद प्रवाह को निवेश की कुल लागत से विभाजित करने के बाद निकाला जाता है।
इस विधि का प्रमुख उद्देश्य निवेश के माध्यम से प्राप्त होने वाला नगद प्रवाह की गणना करना है। यदि नगद प्रवाह अधिक होता है तब निवेशक को लाभ की उम्मीद भी अधिक होती है। इसके साथ ही संभावित रूप से कम लाभ को प्रदर्शित करती है। इस विधि से प्रमुख लाभ निवेशक को वास्तविक रूप से नगद प्रवाहों के आधार पर ही निर्णय लेकर अनुमति प्रदान करती है ताकि वह जोखिम और रिटर्न के बीच एक संतुलन स्थापित कर सके। इस विधि की कुछ सीमाएं हैं जैसे, यह केवल ऐसे निवेशों पर लागू होती है जिसे नियमित रूप से नगद प्रवाह प्राप्त होता है। जैसे कि, स्टॉक बॉन्ड या रियल स्टेट। इस प्रकार नगद प्रवाह मूल्यांकन विधि द्वारा निवेदक को उसके ही निवेश पर संभावित रिटर्न का एक स्पष्ट दृष्टिकोण मिलता है। जो कि उसे भविष्य में निर्णय लेने में सहायता प्रदान करती है।
सारांश।
इस लेख में हमने किसी भी कंपनी के वर्तमान मूल्य को ध्यान में रखते हुए उसके इंट्रिसिक वैल्यू का आकलन किस प्रकार करते हैं। इसके लिए पांच मुख्य तरीकों से समझने का प्रयास किया है। यह सभी प्रकार के तरीके बड़े ही सरल औरआसान विधि है।
हम उम्मीद करते हैं कि, जैसा कि हमने इस लेख में इंट्रिसिक वैल्यू के ऊपर विस्तार से इंट्रिसिक वैल्यू क्या है, इंट्रिसिक वैल्यू और बाजार वैल्यू में प्रमुख अंतर, इंट्रिसिक वैल्यू का महत्व इत्यादि के बारे में आपको बताया है। अगर आपको यह जानकारी किसी कंपनी के फंडामेंटल एनालिसिस में आपकी थोड़ी सी भी मदद हुई हो तो कृपया इस लेख को अधिक से अधिक लोगों तक शेयर करें।
FAQ
Q.1 ईपीएस कितना अच्छा है?
आईपीएस EPS का मतलब अर्निंनिंग पर शेयर से होता है। किसी कंपनी का EPS जितना अधिक रहता है। उस स्थिति में निवेशक को बेहतर रिटर्न की संभावना होती है। कंपनी की प्राइस टू अर्निंग रेश्यो या PE अनुपात जितना कम होता है उतना ही बेहतर होता है।
Q.2 स्टॉक के सही मूल्य की गणना कैसे करें?
किसी भी स्टॉक के सही मूल्य की गणना के लिए सबसे सरल तरीका कंपनी के मूल्य के PE रेश्यो के अनुपात की गणना करने के पश्चात प्राप्त होता है। PE अनुपात कंपनी के द्वारा रिपोर्ट की गई प्रति शेयर आय में विभाजित करने से प्राप्त होता है। जिस कंपनी का PE रेश्यो कम होता है तब ऐसी स्थिति में वह शेयर खरीदने योग्य अधिक आकर्षक दिखाई दे रहा होता है।सामान्यतः PE रेश्यो 25 से कम होना चाहिए।
Q.3 बफेट फार्मूला क्या है?
वारेन बफेट ने किसी भी कंपनी के इंट्रिसिक वैल्यू को लेकर उस कंपनी के विकास की दर को एक सतत विकास दर के सूत्र को बताया है जिसमें [ आरओई * (1 – भुगतान अनुपात)] की गणना करने के लिए इक्विटी पर रिटर्न की औसत तथा औसत प्रतिधारण अनुपात (1 – औसत भुगतान अनुपात) का उपयोग करते हैं।
Q.4 कैसे चेक करें कि कोई स्टॉक मौलिक रूप से मजबूत है या नहीं?
आप इस प्रकार से चेक कर सकते हैं कि, किसी कंपनी का शेयर अपने जैसे बाकी कंपनियों से मजबूत है या नहीं। उसके लिए आप राजस्व विधि इक्विटी पर रिटर्न तथा लाभ के मार्जिन इत्यादि की गणना करके दूसरी कंपनियों से तुलना करने के बाद पता लगा सकते हैं।यदि कंपनी हर साल इन औसतों पर बेहतर प्रदर्शन करती है। तो यह आपके निवेश के लिए अधिक दावेदार कंपनी हो सकती है।
Q.5 क्या होगा यदि आंतरिक मूल्य बाजार मूल्य से अधिक है?
आंतरिक मूल्य यानी कि, इंट्रीसिक वैल्यू जब बाजार मूल्य से अधिक होती है। तो इसका सीधा सा मतलब होता है कि, कंपनी अभी ओवरवैल्यूड स्थिति में है मतलब कि अभी यह बहुत ही महंगे भाव पर उपलब्ध है। अतः ऐसी स्थिति में आपको उस कंपनी को नहीं खरीदना चाहिए। जब इंट्रिसिक वैल्यू का मूल्य बाजार में चल रहे मूल्य से कम हो। तभी किसी शेयर में खरीदारी का मौका तलाशना चाहिए।
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